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माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा हम लोकतंत्र में जी रहे हैं , किसी निरंकुश राज में नहीं

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सुप्रीम कोर्ट ने मलयाली उपन्यास मीशा के कुछ अंश हटाने की याचिका को खारिज कर दिया है | प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने फैसला लिखते हुए कहा , हम किसी आदिनायकवाद में नहीं बल्कि लोकतांत्रिक राष्ट्र में रहते है , जो विचारों के आदान-प्रधान और अभिव्यक्ति की आजादी देता है | याचिका में कहा गया था , उपन्यास में मंदिर जाने वाली हिन्दू महिलाओं के लिए अपमानजनक बातें है |

सीजेआइ दीपक मिश्रा , जस्टिस एएम खानविलकर व जस्टिस डिवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा , खुद को स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्त करने का लेखक का मौलिक अधिकार है | किताबों पर पाबंदी की संस्कृति विचारों के मुक्त प्रवाह को सीधे प्रभावित करती है व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अपमान करती है |

” इन्टरनेट के दौर में व्यर्थ मुद्दा न बनाएं “

दिल्ली निवासी याचिकाकर्ता एन राधाकृष्णन ने खुद को “गौरवान्वित हिंदू” बताते हुए कहा , एस हरीश के उपन्यास मीशा के अपमानजनक हिस्सों में मंदिरों के ब्राह्मण पुजारियों का अपमान किया गया है | यह जातिवाद/नस्लवाद पर आधारित अपमान है | याचिका में कहा गया , इसका समर्थन कर रहे कुछ नेता बहुसंख्यक हिन्दुओं की भावनाओं को रौंदना चाहते है | जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ा ने कहा , इंटरनेट के दौर में आप ऐसी चीजों को व्यर्थ में मुद्दा बना रहे है | इसे भूल जाएं |

( साभार : राजस्थान पत्रिका में दिनांक 06-09-2018 को प्रकाशित खबर )