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संवाद के अधिकारियों ने ही लगाया लाखों रुपयों का चूना!!!

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टेंडर प्रक्रियाओं मे अधिकतम पारदर्शिता के लिए ही राजस्थान सरकार द्वारा आरटीपीपी एक्ट 2012 अस्तित्व मे लाया गया था,लेकिन भ्रष्टाचारियो के कृत्यों को देखकर लगता नहीं है कि इस एक्ट का कोई औचित्य रह गया है|इस निविदा मे न केवल जिम्मेदारों द्वारा अपने पद का दुरुपयोग कर फर्म विशेष को फायदा पहुंचाया गया बल्कि जम कर राजस्व को भी नुकसान पहुंचाया गया| आरटीपीपी एक्ट 2012 मे कहीं ऐसा प्रावधान नहीं है कि तकनीकी और वित्तीय बीड्स मे एक बार नामांकन करने के बाद उनमे किसी प्रकार काँट-छाँट करना,हेराफेरी की जा सके और यह भी संभव नहीं कि यह गलती एक फर्म से ना होकर तीन-तीन फ़र्मों से हो?इतना ही नहीं जिन जिम्मेदारों पर  राजस्व हित मे इन एजेंसियों से नेगोशिएशन कर रेट और कम करवाने का दारोमदार था,वही जिम्मेदार इन एजेंसियों से नेगोशिएशन नहीं कर,न्यूननम दर(जिसे फ़र्मों की गलतियों के बाद 6% स्वीकार किया जाना था) को भी 7.99% तक ले गए|

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