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माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश

अब गुनाह नहीं बालिगों में सहमति से होने वाले समलैंगिक रिश्ते

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देश में दो बालिगों के बीच सहमति से समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं रहा | सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसले में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के उन प्रावधानों को रद्द कर दिया जिनके आधार पर दो बलिगो के बीच निजी तौर पर सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाता था | प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा , जस्टिस आरएफ नरीमन , जस्टिस एएम खानविलकर ,जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस इन्दु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने यह फैसला आम राय में सुनाया | प्रधान न्यायाधीश ने कहा , संवैधानिक लोकतंत्र में परिवर्तन जरूरी है |

संविधान पीठ ने 157 साल पुरानी आइपीसी की धारा 377 को मनमाना व अताकिर्क करार देते हुए निजी पसंद को सम्मान देने की बात कही |अदालत ने कहा , आइपीसी की धारा 377 गरिमा के साथ जीने के अधिकार के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है |

निजता को सम्मान

फैसला लोगों को मूल स्वरूप में स्वीकार करने व निजता को सम्मान देने की दिशा में एक कदम है | मैं जो हूं , सो हूं | मैं जैसा हूं , मुझे वैसे ही अपनाइए | जिन्होंने यह लड़ाई लड़ी , उन्हे बधाई |

इसका समर्थन नहीं

इस निर्णय की तरह हम भी इस को अपराध नहीं मानते |समलैंगिक विवाह और संबंध प्रकृति से सुसंगत एवं नैसगिर्क नहीं है , इसलिए हम इस प्रकार के संबंधों का समर्थन नहीं करते |

( साभार : राजस्थान पत्रिका में दिनांक 07-09-2018 को प्रकाशित खबर )