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माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश

शादी से इतर संबंध अपराध नहीं,लेकिन तलाक का वाजिब आधार

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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को विवाहेतर संबंधों को अपराध मानने से इंकार कर दिया|संविधान पीठ ने एकमत से फैसला सुनाया कि भारतीय दंड संहिता की धारा-497 असंवैधानिक है|पांच सदस्यीय पीठ ने चार अलग-अलग लिखे फैसलों में माना कि अंग्रेजों के जमाने का यह कानून नागरिकों की निजता व समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है|यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मिले नागरिक अधिकारों से धोखा है|प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने मुख्य फैसला सुनाते हुए कहा,विवाह से बाहर बनाया गया संबंध एक व्यक्तिगत मुद्दा हो सकता है जो तलाक का आधार भी बन सकता है पर यह अपराध नहीं है|

उन्होने कहा,व्यभिचार के कारण किसी विवाहित का घर तबाह हो सकता है|किसी को घर तबाह करने का सामाजिक लाइसेंस नहीं दिया जा सकता है|फिर भी इस व्यवहार को कानूनन अपराध नहीं माना जा सकता है|कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-198(1) व 198(2) को भी अवैध माना|