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पुलिस फाइल्स

गन्दी राजनीति……विवादित कानून……..और दूषित व्यवस्था का शिकार………. एक पत्रकार!!!

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सत्ता में आने के बाद राजनीति कैसे अपने तेवर दिखाती है इसका जीता-जागता उदाहरण है बाड़मेर के पत्रकार ‘दुर्ग सिंह राजपुरोहित’ के खिलाफ SC/ST एक्ट में गिरफ्तारी|जिसमे सत्ताधीशों ने  अपने विरोधी को पटकनी देने के लिए पुलिस,कानून व्यवस्था और  SC/ST एक्ट को बखूबी इस्तेमाल किया|सत्ताधीशों के इस कृत्य ने दो सरकारों पर सवालिया निशान तो खड़े किये ही  है,साथ ही SC/ST एक्ट के दुरूपयोग की भयावह तस्वीर भी बयाँ की है,जिसने बता दिया गया है कि आने वाले समय में SC/ST एक्ट का प्रयोग अपने विरोधियों से बदला लेने के लिए बखूबी किया जाएगा,जिसके लिए जरुरी है कि आपका विरोधी एक सवर्ण होना चाहिए,केस दर्ज करवाने के लिए विश्वसनीय आदमी होना चाहिए जो कि SC/ST एक्ट के अंतर्गत केस दर्ज करवाने में सक्षम हो,साथ ही आपका दबदबा ऐसी जगह होना चाहिए जहाँ पर आप कानून व्यवस्था को अपने मनमर्जी से चलवा सके,भले ही वह देश का दूरस्थ राज्य ही क्यों न हो|

ऐसा ही एक मामला राजस्थान के बाड़मेर के पत्रकार ‘दुर्ग सिंह राजपुरोहित’ की गिरफ्तारी से जुड़ा है,जिसमे एक वरिष्ट राजनेता से  पंगे ने पत्रकार को बाड़मेर से बिहार की जेल तक पहुंचा दिया|जिसको लेकर अब तक की कार्रवाइयां सवालों के घेरे में हैं और कहीं न कहीं यह मामला इस कानून के बेजां इस्तेमाल की ओर भी इशारा कर रहा है.पूरा मामला एक दलित मजदूर की कथित प्रताड़ना से जुड़ा हुआ है और इस मामले में आरोपित व्यक्ति राजस्थान का पत्रकार है. पत्रकार राजस्थान के बाड़मेर में इंडिया न्यूज से संबद्ध हैं.पटना के एससी-एसटी कोर्ट से जारी अरेस्ट वारंट के आधार पर बाड़मेर की पुलिस ने उक्त पत्रकार को गिरफ्तार किया है. पत्रकार का नाम दुर्ग सिंह राजपुरोहित है.बाड़मेर की पुलिस के अनुसार अरेस्ट वारंट मिलने पर 19 अगस्त को दुर्ग सिंह राजपुरोहित को गिरफ्तार कर पटना भेजा गया.इस मामले में नाम आने पर पत्रकार दुर्ग सिंह ने हैरानी जताई है और उनका कहना है कि वह कभी पटना गए ही नहीं, फिर मारपीट और प्रताड़ना का सवाल ही पैदा नहीं होता है.पत्रकार की तरह ही इस शिकायत को लेकर कथित फरियादी भी हैरान है और उसका कहना है कि उसने ऐसी कोई शिकायत दर्ज कराई ही नहीं.दोनों पक्षों के इनकार से यह संदेह गहरा रहा है कि साजिशन पत्रकार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है. चूंकि मामला एससी-एसटी एक्ट के तहत कराया गया है, इसलिए इसमें छानबीन की कोई जरूरत महसूस नहीं की गई और सीधे पत्रकार की गिरफ्तारी का फरमान जारी कर दिया गया.

पटना के एससी-एसटी कोर्ट में 31 मई को दायर परिवाद (261/18) में फरियादी का नाम नालंदा निवासी राकेश पासवान दर्ज है. मामला एससी एंड एसटी पीओए एक्ट की धारा 3 (1), (एच), (आर), (एस) व भारतीय दंड संहिता की धारा 406 के तहत दर्ज कराया गया है.शिकायत पत्र के साथ पहचान पत्र के रूप में आधार कार्ड की फोटो कॉपी और एफिडेविट भी जमा किए गए हैं, जिन पर राकेश पासवान के नाम दर्ज हैं.राकेश के बयानों के अनुसार उसे पत्थर तोड़वाने के लिए दुर्गेश सिंह राजस्थान ले गए थे. वहां राकेश ने 6 महीने काम किया. शिकायत में आगे लिखा गया है, ‘मैंने (राकेश ने) छह माह काम किया और वापस आ गया, तो दुर्गेश मेरे यहां आए और चलने को बोले, तो मैंने पिता जी की तबीयत खराब होने के कारण जाने से मना कर दिया.’लिखित बयान के मुताबिक, ‘15 अप्रैल 2018 को दुर्गेश राकेश के घर पर गए और राजस्थान चलने का दबाव बनाया, लेकिन राकेश ने इनकार कर दिया, तो गाली-गलौज और धमकी देकर वह चले गए.’बिंदुवार दर्ज बयान में कहा गया है कि 7 मई को दुर्गेश दोबारा दीघा घाट स्थित घर पर 3-4 लोगों के साथ आए और उन्हें घसीट कर घर से सड़क पर ले आए. सड़क पर लाकर जातिसूचक गाली देते हुए जूते से मारने लगे.शिकायत के अनुसार, राकेश को पिटता देख संजय, सुरेश और अन्य 8-10 लोग आ गए, तो सफेद बोलेरो से दुर्गेश व उसके साथ आए लोग भाग गए.

(इस्तगासे से दर्ज मामला और परिवादी राकेश का प्रार्थना पत्र)

दैनिक भास्कर में छपी खबर में राकेश पासवान ने कहा है कि उसने किसी के खिलाफ शिकायत नहीं की. अलबत्ता, उसने दीघा निवासी संजय सिंह का जिक्र जरूर किया है, जिसने उस पर शिकायत करने का दबाव बनाया था.

(दैनिक भास्कर,बिहार के पटना संस्करण में दिनांक 21/08/2018 को प्रकाशित खबर) 

राकेश के मुताबिक, वह संजय सिंह के यहां अर्थमूवर चलाता था. राकेश पासवान ने दैनिक भास्कर को बताया कि कुछ महीने पहले वह दीघा गया था और संजय सिंह का अर्थमूवर चला रहा था. उसने यह भी बताया है कि दो महीने पहले वह अर्थमूवर लेकर एक जमीन पर गया था, जहां लोगों ने अर्थमूवर जला दिया था.राकेश के मुताबिक, उस घटना को लेकर संजय सिंह ने उसे शिकायत दर्ज कराने को कहा था, लेकिन उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया था. राकेश ने आगे कहा है कि उसे नहीं बताया गया था कि किसके खिलाफ शिकायत दर्ज करानी है. उसने यह भी कहा है कि वह कभी भी बाड़मेर नहीं गया.

इधर, दुर्ग सिंह राजपुरोहित ने भी कहा है कि वह कभी पटना गए ही नहीं, इसलिए किसी से मारपीट करने का सवाल ही पैदा नहीं होता है. उन्होंने साजिशन मामला दर्ज करने की बात कही है.दुर्ग सिंह के दोस्तों व सहयोगियों का भी यही कहना है कि वह पटना नहीं गए.दुर्ग सिंह के सहयोगी देव किशन राजपुरोहित ने फोन पर बताया, ‘दुर्ग सिंह का पत्थर का कारोबार नहीं है. उन्होंने कहा कि दुर्ग का एक भाई फौज में है दूसरा सरकारी नौकरी में. वह खुद पत्रकार हैं. उनका पत्थर कारोबार से कोई लेनादेना ही नहीं है. उसे साजिश के तहत फंसाया गया है.’गिरफ्तारी की खबर के बाद दुर्ग सिंह के भाई भी पटना आ गए हैं और जमानत के लिए कोर्ट में अर्जी डालने की प्रक्रिया चल रही है.

 

कानून व्यवस्था पर उठते सवाल???

बाड़मेर में पत्रकार श्री दुर्गसिंह राजपुरोहित की अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत असंवैधानिक गिरफ्तारी ने वर्तमान कानून व व्यवस्था तथा न्यायिक प्रक्रिया पर अनेक सवाल खड़े कर दिए है ?

1. संबंधित अदालत ने मामला अग्रिम अनुसंधान के लिए स्थानीय पुलिस के पास क्यो नही भेजा ? अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम में इन मामलों में राजपत्रित अधिकारी से अनुसंधान किये जाने का प्रावधान है।

2.अदालत ने परिवादी के बयान लिए,किन्तु परिवादी घटना के सभी तथ्यों को सार्वजनिक तौर पर क्यो नकार रहा है। अदालत को पक्षकार बनने की क्या आवश्यकता आ गई थी ?

3.क्या अदालत किसी भी परिवाद पर विपक्षी को सुनवाई का मौका दिए बिना गिरफ्तारी वारंट जारी कर न्याय कर रही है ?

4.पटना के SP साहब के पुलिस स्टेशनो पर कितने स्टैंडिंग वारंटी व उदघोषित अपराधी फरार है । उनको पकड़ने की प्राथमिकता को नजरअंदाज कर अदालत के ताजा वारंट की तत्काल तामील कराना उनकी आपराधिक मिलीभगत को स्पष्ट करती है।

5. थानों में 3-4 दशकों से अदम तामील जमानती व गिरफ्तारी वारंट पेंडिंग है। पटना व बाड़मेर के SP साहबान की इस मामले में त्वरितता उनकी निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह पैदा कर आपराधिक मिलीभगत की ओर ईशारा करती है।

6. बाड़मेर SP ने किसके कहने पर रातों रात अपने तीन सिपाहियों के साथ निजी कार से पत्रकार को बिहार भेजा?

पूरे मामले में अब तक की कार्रवाई देखकर साफ पता चल रहा है कि बिना किसी छानबीन के कार्रवाई की गई है.अमूमन मामले की शिकायत सबसे पहले थाने में दर्ज कराई जाती है. लेकिन, इस मामले में एससी-एसटी कोर्ट में मुकदमा दायर किया गया है.कोर्ट में दायर परिवाद के मुताबिक, दीघा थाने में शिकायत नहीं लिए जाने के कारण राकेश को कोर्ट की शरण में जाना पड़ा. लेकिन, दीघा थाने की पुलिस का कहना है कि उनके पास ऐसा कोई मामला आया ही नहीं.दीघा थाने के एक पुलिस अफसर ने कहा, ‘मैं तो आपके मुंह से ही सुन रहा हूं कि ऐसा कोई मामला हुआ है. लेकिन, थाने में ऐसा केस आया था, मुझे नहीं पता.’अजीब बात यह भी है कि कोर्ट में परिवाद दायर करने के बाद पीड़ित का बयान भी दर्ज हुआ है और गवाहों का भी. लेकिन, जैसा कि राकेश पासवान ने बताया है कि उसने कोई मुकदमा ही दर्ज नहीं कराया, तो जाहिर है कि उसने बयान भी दर्ज नहीं कराया होगा.

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वह कौन था जिसने कोर्ट में बयान दर्ज कराया और वे लोग कौन थे जिन्होंने ‘झूठी’ गवाहियां दीं.कानून के जानकारों का कहना है कि तमाम बयानों के मद्देनजर शिकायत पर कार्रवाई के साथ इसकी भी गहराई से जांच होनी चाहिए कि दर्ज कराई गई शिकायत सही है या नहीं|

बहरहाल,आवाज उठाने वाले साथी पत्रकारों,सामाजिक संगठनों पर पुलिस और प्रशासन का दबाव है,सुनने में आया है कि आवाज उठाने वाले कई लोगों के फेसबुक अकाउंट बंद करवा दिए गए है|इसी बीच आरोपी  पत्रकार की जमानत अर्जी खारिज कर,उसे न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया है|घटना के खिलाफ आवाज उठाने के लिए जनता सड़कों पर आने लगी है,डर है कि चुनावी साल में कहीं यह घटना मौजूदा सरकार के खिलाफ आग में घी का काम नहीं करें|

 

(दैनिक भास्कर,बालोतरा संस्करण में दिनांक 22/08/2018 को प्रकाशित खबर)

(राजस्थान पत्रिका में दिनांक  23/08/2018 को प्रकाशित खबर)