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काला धंधा गोरे लोग

नारायण सेवा संस्थान द्वारा संचालित मानसिक विमन्दित गृह मे संचालकों की लापरवाही से हुई तीन बच्चों की मौत के जिम्मेदार घटना के एक साल बाद भी कानून की पकड़ से दूर!!!

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आपको बता दें कि इस मामले मे जिला कलेक्टर महोदय द्वारा दो जांच कमिटियाँ बनाई गयी थी|जिनमे से एक जांच बड़गांव एसडीओ द्वारा जांच की जा रही थी जबकि दूसरी जांच सीएमएचओ,उदयपुर द्वारा की जा रही थी|दोनों टीमों ने अपनी अंतरिम/अंतिम  रिपोर्ट कलेक्टर को पेश कर दी| लेकिन इस मामले मे सरकार को सौंपी अपनी अंतिम रिपोर्ट मे तत्कालीन उदयपुर कलेक्टर चेतन देवड़ा ने एसडीओ बड़गांव की जांच रिपोर्ट को दरकिनार कर,सीएमएचओ उदयपुर की अध्यक्षता मे गठित जांच कमिटी की जांच रिपोर्ट को तवज्जो देकर,मामले मे संस्थान द्वारा की गई किसी लापरवाही को सिरे से नकारते हूए इस मामले को सामान्य घटना करार देकर,संस्थान और जिम्मेदार अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी|जबकि तत्कालीन SDO बड़गांव और आईएएस सलोनी खेमका द्वारा नारायण सेवा संस्थान के विमन्दित गृह मे हो रही भयंकर गढ़बड़ियों,अनियमितताओ और घोर लापरवाही का खुलासा करते हुए मामले की विस्तृत जांच करवाने की अनुशंसा भी की गई थी|

सबसे आश्चर्य की बात यह है कि जब इस पूरे मामले मे विभागीय जांच चल रही थी,नारायण सेवा संस्थान के कर्ता धर्ता अपने पापों को छुपाने की तरकीबे निकाल रहे थे|सूत्रों के अनुसार विगत 5 सालों मे संस्थान द्वारा भयंकर रूप से की गई अनियमितताओ के फलस्वरूप कई बच्चे काल का ग्रास बन गए थे,इस घटना के बाद आशंका थी कि यदि इस मामले मे कोई बड़ी जांच हो गई तो संस्थान के काले कारनामे सबके सामने आ जाएंगे,इसी के चलते घटना के महज एक महीने के अंदर ही  संस्थान ने निदेशालय विशेष योग्यजन को चिट्ठी लिखकर,मानसिक विमन्दित गृह का संचालन करने मे असमर्थता जताते हुए,बच्चों को अनयंत्र शिफ्ट करने की प्रार्थना की गई|जिसे स्वीकारते हुए,विभाग द्वारा बच्चों की अकाल मौत के जिम्मेदार संस्थान और अधिकारियों को कटघरे मे खड़ा करने की बजाय बच्चों को अनयंत्र संस्थानों मे शिफ्ट कर,संस्थान को मानसिक विमन्दित बच्चों की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया और इसी के साथ संस्थान के काले कारनामों पर भी पर्दा पड़ गया|

मामले को दबाने के लिए संस्थान और सरकारी अधिकारियों द्वारा की गई इस जल्दबाजी से स्पष्ट है  कि नारायण सेवा संस्थान के मानसिक विमन्दित गृह मे हो रही मौतों का सिलसिला कोई नया नहीं था,जिसके चलते ही संस्थान के कर्ता-धर्ताओ ने इसे गंभीरता से नहीं लिया|ऐसे मे अंदाजा लगाया जा सकता है कि विगत 5 सालों मे ना जाने कितने बच्चे संस्थान की लापरवाही का शिकार होकर,काल का ग्रास बन गए होंगे|ऐसे मे यही सवाल जेहन मे आता है कि क्या प्रदेश मे मानसिक विमन्दित बच्चों की जिंदगी वाकई भगवान भरोसे है?

 

 

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